राजभर जाति अंग्रेज इतिहासकारों की दृष्टी मे अंग्रेजो द्वारा भर जाति के विषय मे लिखी गई सामग्री के सम्बन्ध मे उनकी जितनी प्रशंशा की जाए उतनी ही कम है! राजभार जाति वह जाति है जिसने सतयुग, त्रेता, द्वापर आदि युगों मे भी अपना डंका बजाय है! गोरखपुर गजेटियर के पृष्ट १७३ और १७५ मे लिखा है की जब अयोध्या का नास हो गया तब वंहा के राजाओ ने रुद्रपुर मे अपनी राजधानी स्थापित की और श्री रामचंद्र के बाद जो लोग गद्दी पर बैढे, वे लोग भर तथा उनके समकालीन जातियो द्वारा परास्त हुए! जोनपुर गजेटियर के पृष्ट १४८ मे लिखा है कि जब भरो के ऊपर कठोरता का व्यवहार होने लगा तब कुछ पराधीन भर जाति के लोग अपनी जाति का नाम बदल दिया! समयानुसार धीरे धीरे क्षत्रिय मे मिल गए! बलिया गजेटियर के पृष्ट ७७ और १३८ मे कहा गया है कि आर्यों मे से भर भी एक प्राचीन जाति है! इस जाति के नाम पर ही इस देश का नाम भारत पड़ा है! आज भारत के किसी भी क्षेत्र मे जाइये इस जाति के नाम पर स्थानों के नाम अवश्य मिल जाएँगे! बिहार प्रान्त का नाम भी इसी जाति के नाम पर पड़ा है! दी ओरिजनल इन है विटनेस ऑफ़ भारतवष के पृष्ट ४० पर लिखा है कि कासी के निक...
Popular posts from this blog
भारशिव वंश (नाग वंश) व राजा वीरसेन नाग वंश मगध साम्राज्य के निर्बल हो जाने पर भारत के विभिन्न प्रदेशों में जो अनेक राजवंश स्वतंत्र हो गये थे, उनमें विदिशा का 'नाग वंश' भी एक था। बाद में यह वंश पहले शकों की और फिर कुषाणों की अधीनता में चला गया। अब यौधेयों द्वारा कुषाणों के विरुद्ध विद्रोहकरने से जो अव्यवस्था उत्पन्न हो गयी थी, उससे लाभ उठाकर नागों ने अपनी शक्ति का विस्तार करना प्रारम्भ किया। ग्वालियर के समीप पद्मावती को उन्होंने अपना केन्द्र बनाया, और वहाँ से बढ़ते- बढ़ते कौशाम्बी से मथुरा तक के सब प्रदेशों को अपने अधीन कर लिया। इन प्रदेशों में उस समय कुषाणों का राज्य था। उन्हें परास्त कर नाग राजाओं ने अपने स्वतंत्र राज्य की नींव डाली। बाद में नाग पूर्व की ओर और भी आगे बढ़ते चले गये और मिर्जापुर ज़िले में विद्यमान कान्तिपुरी को उन्होंने अपनी राजधानी बनाया। भारशिव ये 'नाग राजा' शैव धर्म को मानने वाले थे। इनके किसी प्रमुख राजा ने ...
Comments
Post a Comment